मानस किंकर ब्रह्म ऋषि सुंदर दास की पुण्यतिथि उन्हें किया गया याद, मानस निकेतन पंत विहार में आयोजित किया गया रामायण महोत्सव एवं गुरु पूजन
सहारनपुर : मानस किंकर ब्रह्म ऋषि सुंदर दास की पुण्यतिथि उन्हें किया गया याद, मानस निकेतन पंत विहार में आयोजित किया गया रामायण महोत्सव एवं गुरु पूजन
हारना महंत जी के चरित्र में नहीं था, असली बैरागी महंत जी का आभूषण ही एक हाथ में शास्त्र और एक हाथ में शस्त्र था,उनका स्पष्ट मत था कि शक्तिहीन की भक्ति का कोई अर्थ नहीं होता : पद्मश्री योगी भारत भूषण
✍रिर्पोट :- गौरव सिंघल,जिला प्रभारी- न्यूज एवीपी,जनपद सहारनपुर, उप्र:।
सहारनपुर (एवीपी न्यूज ब्यूरो)। आज जबकि धर्म समाज में विघटन लाने का कारण बनता जा रहा है सहारनपुर की मिट्टी से राम नाम साधना की शुरुआत करके सनातन धर्म पताका को देश और दुनिया तक पहुंचाने वाले ब्रह्मऋषि महंत सुंदर दास ने राम नाम के सूत्र में पिरोकर दुनिया को जोड़ने का बेमिसाल काम किया है, उनका कहना था कि जो यह जानते हैं कि रोम-रोम में बसने वाला राम एक ही है उन्हें ही राम नाम पलता है इसीलिए राम नाम गुणगान करने का सर्वोत्तम तरीका परमात्मा के बनाए इंसान को खुले दिल से अपनाना है, इस विचार के साथ राम कथा के अमर गायक और रामायण विश्व संस्कृति परिवार की परिकल्पना को साकार कर के मॉरीशस और बैंकॉक जैसे देशों में समाज को राम के नाम पर एकजुट कर देने वाले संत ब्रह्म ऋषि महंत सुंदर दास को उनकी पुण्यतिथि पर आज मानस निकेतन पंत विहार में आयोजित रामायण महोत्सव एवं गुरु पूजन में भाव विभोर होकर याद किया गया। इस कार्यक्रम में मौजूद पद्मश्री योगी भारत भूषण ने कहा कि हारना महंत जी के चरित्र में नहीं था, असली बैरागी महंत जी का आभूषण ही एक हाथ में शास्त्र और एक हाथ में शस्त्र था और उनका स्पष्ट मत था कि शक्तिहीन की भक्ति का कोई अर्थ नहीं होता। उन्होंने गर्व से याद किया कि आज ही के दिन महंत जी अपना कर्तव्य पालन करते हुए मौत से भी सीधे टक्कर ले बैठे और सड़क दुर्घटना में पुत्रवधू की जान बचाने के लिए स्वयं को मौत के मुंह में झोंक दिया। एक पक्के लेकिन उदार मना हिंदू होते हुए भी महंत सुंदर दास ने अपनी कथा सत्संग में रामचरितमानस के सार्वभौम स्वरूप का दिग्दर्शन जिस रूप में कराया उस का ही परिणाम है कि उनके प्रवचनों ने न सिर्फ हिंदू-मुसलमान को जोड़ा बल्कि मॉरीशस और बैंकॉक जैसे देशों में भी रामकथा की ऐसी प्रतिष्ठा की कि इंडोनेशिया और सूरी नाम जैसे देशों की मिसाल सामने रखकर मॉरीशस के राजनीतिक परिदृश्य को ही बदल कर रख दिया। उन्होंने कहा कि आज वैश्विक पटल पर मेरे द्वारा किए गए कार्यों के पीछे महंत जी की प्रेरणा का बड़ा योगदान रहा है। महंत जी को क्रांतिकारी संत की संज्ञा देते हुए उनके उत्तराधिकारी महंत कौशलेंद्र स्वामी ने कहा कि सनातन धर्म को नई परिभाषा देते हुए महंत जी ने सिखाया इसका मतलब मूर्ति पूजक समाज मात्र समझना इसे बहुत कम आंकना है सनातन धर्म के पीछे ऋषि यों का संदेश यही रहा है कि धर्म ही सनातन यानी हमेशा रहने वाला है महंत एवं मोटिवेशनल स्पीकर प्रोफेसर राघवेंद्र स्वामी ने कहा कि हमारे ऋषियों ने कभी धर्मांतरण और धार्मिक विस्तार वाद की पैरवी नहीं की बल्कि स्वधर्मम निधनम श्रेय: पर धर्मं भयावह कह कर सभी धर्मावलंबियों को अपने धर्म पर गर्व करने और उस पर मजबूती से आचरण करने की शिक्षा और प्रेरणा दी। यही वजह थी कि एक हिंदू धर्म गुरु होते हुए भी हर धर्म के लोग ब्रह्मर्षि सुंदर दास जी के सानिध्य में स्वयं को सुरक्षित और गौरवान्वित महसूस करते रहे। उन्होंने बताया कि महंत जी देश धर्म और गाय के ऐसे परम भक्त थे कि उन्होंने आर्य समाज और सनातन धर्म व खालसा पंथ की दूरी के भ्रम को भी पाट दिया था। राष्ट्र वंदना मिशन के राष्ट्रीय संयोजक विद्यार्णव शर्मा ने बताया कि महंत जी बड़े मुखर होकर कहते थे कि आज देश और धर्म को जिंदा रखने में महर्षि दयानंद सरस्वती और गुरु गोविंद सिंह के योगदान से हम कभी उऋण नहीं हो सकते। मोक्षायतन अंतरराष्ट्रीय योग आश्रम के सचिव नंदकिशोर शर्मा ने महंत जी को शस्त्र और शास्त्र महारथी बताते हुए उनके उत्तराधिकारी व मानस पीठ के महंत कौशलेंद्र स्वामी और राघवेंद्र स्वामी से पेशकश की कि युवाओं में चरित्र निर्माण व आत्मविश्वास जगाने के लिए महंत सुंदर दास जी द्वारा संचालित परंपरागत शस्त्र संचालन कला और रामायण, गीता ज्ञान परीक्षा का संचालन फिर से शुरू करें।