पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा नाट्य समारोह की दूसरी संध्या में मंचित हुआ नाटक “सादर आपका” संगीत नाटक अकादमी का लेखक एक नाटक अनेक नाट्य समारोह में हुई मंचकृति की प्रस्तुति

लखनऊ ब्यूरो

 

पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा नाट्य समारोह की दूसरी संध्या में मंचित हुआ नाटक “सादर आपका”

संगीत नाटक अकादमी का लेखक एक नाटक अनेक नाट्य समारोह में हुई मंचकृति की प्रस्तुति

लखनऊ। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ओर से पहली बार आयोजित हो रहे “लेखक एक नाटक अनेक” नाट्य समारोह के दूसरी शाम मंगलवार 22 नवम्बर को लखनऊ की मंचकृति संस्था की ओर से वरिष्ठ रंगकर्मी गोपाल सिन्हा के निर्देशन में नाटक “सादर आपका” मंचन किया गया। नाटक ने महत्वाकांक्षा की दौड़ में क्षीण होते रिश्तों के प्रति दर्शकों को सचेत किया।

गोमती नगर स्थित अकादमी परिसर के संत गाडगे जी महाराज प्रेक्षागृह में यह नाट़्य समारोह 21 से 25 नवम्बर तक किया जा रहा है। संस्कृति प्रमुख सचिव मुकेश कुमार मेश्राम, निदेशक शिशिर, विशेष सचिव आनंद कुमार की प्रेरणा से आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इस नाट्य समारोह में पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा के लिखे नाटकों के मंचन के लिए देशभर से प्रतिष्ठित नाट्य संस्थाओं और निर्देशकों को आमंत्रित किया गया है। अकादमी सचिव तरुण राज ने बताया कि भारतेन्दु नाट्य अकादमी उत्तर प्रदेश और सुमुखा नई दिल्ली के सहयोग से आयोजित हो रहे इस समारोह की द्वितीय संध्या में विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी श्री जय शंकर मिश्र, वरिष्ठ रंगकर्मी श्री अनिल रस्तोगी एवं अकादमी सचिव श्री तरुण राज ने दीप जलाकर कार्यक्रम का शुभारंभ किया तथा दिनों अतिथियों को बुके अकादेमी सचिव द्वारा देकर सम्मानित किया। इस समारोह में बुधवार 23 नवम्बर को दिल्ली की सुमुखा संस्था की ओर से अरविंद सिंह के निर्देशन में नाटक “अपने अपने दांव”, का मंचन किया जाएगा।

“सादर आपका” हास्य व्यंग्य से निबद्ध, मंच सिद्ध लोकप्रिय मूल हिंदी नाटक है। कथानक के अनुसार नाटक का केंद्रीय पात्र युवा अस्थाई प्रवास के लिए अपने छोटे से शहर से देश की राजधानी दिल्ली पहुंचता है। वहां से शुरू होती है मध्यम वर्गीय परिवार की महत्वाकांक्षाएं। नाटक के अनुसार महत्वाकांक्षाओं का स्वार्थ इतना बलवती हो जाता है कि सामाजिक रिश्ते भी उसके आगे क्षीण हो जाते हैं। उसके परिणामस्वरूप ऐसे संबंध भी कायम होते हैं जो भ्रष्ट समाज के घोतक हैं। स्वच्छंद जीवन जीने की लालसा और उससे उपजे “फ्रस्ट्रेशन” को नाटक में प्रभावी रूप से पेश किया गया। नाटक में दिखाया गया कि महत्वाकांक्षी मां और हीन भावना से घिरे पिता के बीच चल रहे शीतयुद्ध का शिकार और कोई नहीं उनकी बेटी होती है। जो भयावह अकेलेपन और असुरक्षा से जूझती दिखी। मंच पर ब्रह्मानंद का किरदार वरिष्ठ रंगकर्मी राजा अवस्थी ने प्रभावी रूप से अभिनीत किया। विलायती की भूमिका रवि शुक्ला शिब्बू, लज्जा का अनीता शुक्ला, रोहित का अमरीश बॉबी, रेखा का चंचला बनर्जी, गोपाल कृष्ण का संगम बहुगुणा और धनेश का अंकुर सक्सेना ने अदा की। आलोक श्रीवास्तव के संगीत, गोपाल सिन्हा की प्रकाश परिकल्पना, मनीष सैनी के प्रकाश संचालन, नितीश भारद्वाज के प्रकाश सहयोग, शिवरत्न की मंच सज्जा, शहीर अहमद की मुख्य सज्जा, हरीश बडोला का प्रस्तुति नियंत्रण, निशु सिंह की मंच व्यवस्था और अजय शर्मा, राजेश मिश्रा, भानु पांडे, मनोज वर्मा, ममता प्रवीण की सामान्य व्यवस्थाओं ने नाटक के प्रभावी मंचन को साकार किया। नाटक के निर्देशक गोपाल सिन्हा के अनुसार पद्मश्री दया प्रकाश सिन्हा द्वारा वर्ष 1976 में रचित नाट्य कृति है। 11 नवंबर 1976 को इस नाटक का सर्वप्रथम मंचन स्थानीय नाट्य संस्था संकेत द्वारा प्रस्तुत किया गया था जिसमें रोहित की प्रमुख भूमिका में गोपाल सिन्हा ने अभिनय किया था। उसके बाद साल 2017 में गोपाल सिन्हा के निर्देशन में इस नाटक का मंचन लखनऊ में किया गया।