छठ पूजा: आस्था, आत्मबलिदान और भावनाओं का पावन प्रवाह : वरुण चौबे 

*छठ पूजा: आस्था, आत्मबलिदान और भावनाओं का पावन प्रवाह : वरुण चौबे

 

सुरेंद्र कुमार गुप्ता ब्यूरो प्रमुख

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छठ पूजा, विशेषकर उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के लिए, मात्र एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है। यह एक ऐसा महापर्व है जो उनके दिलों की गहराइयों में रचा-बसा है और उनकी भावनाओं का वह अनमोल भाव है, जिसे शब्दों में पिरोना कठिन है। यह पर्व एक ऐसे प्रेम का प्रतीक है जो पूरे वर्ष भीतर ही भीतर बहता रहता है, और जैसे ही सूर्य की लालिमा क्षितिज पर दिखती है, मानो यह प्रेम अपनी पूरी शक्ति के साथ पवित्र आस्था के रूप में फूट पड़ता है। यह वही आस्था है जो उन्हें अपनी मिट्टी, अपने गांव और अपने प्रियजनों से जोड़ती है और उन्हें हर स्थिति में अडिग रखती है।

 

*सूर्य को अर्घ्य: डूबते और उगते सूर्य के प्रति समर्पण*

छठ के इस पवित्र पर्व में हम न केवल उगते हुए सूर्य का अर्घ्य देते हैं बल्कि डूबते हुए सूर्य को भी उसी श्रद्धा के साथ नमन करते हैं। यह परंपरा हमें यह सिखाती है कि चाहे किसी की दिशा बदल जाए, परंतु हमारी आस्था और भावनाएं सच्ची और अडिग रहती हैं। किसी के जीवन में चाहे जैसे भी उतार-चढ़ाव आएं, हम अपने कर्तव्यों और प्रेम से कभी विचलित नहीं होते। छठ का यह दर्शन मानवीय संबंधों और प्रकृति के प्रति समर्पण का ऐसा संदेश है जो किसी अन्य अनुष्ठान में नहीं मिलता।

 

*36 घंटे का कठिन तप – आस्था का चरम रूप*

यह 36 घंटे का निर्जला व्रत एक ऐसा आंतरिक तप है जो केवल शारीरिक कष्ट नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई से उठने वाली शक्ति और विश्वास का प्रतीक है। इस व्रत के माध्यम से व्रती अपनी आत्मा को शुद्ध करने और भक्ति की नई ऊंचाइयों को छूने का प्रयास करते हैं। ऐसा तप और त्याग शायद ही कहीं और देखने को मिले; यह एक ऐसा प्रण है जो हमारे भीतर समर्पण की पराकाष्ठा का प्रतीक बन जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग इसे पूरे मनोयोग से निभाते हैं, और इस कठिन साधना में उन्हें आत्मिक संतोष की अनुभूति होती है। यह महापर्व उसी महानता और शक्ति को दर्शाता है, जो केवल छठ के द्वारा प्राप्त होती है।

 

*प्रकृति से अटूट बंधन और उसकी उपासना का पावन संदेश*

छठ पूजा के हर प्रसाद में प्रकृति की पवित्रता और कृतज्ञता झलकती है – चाहे वह गन्ना हो, कच्चा केला, नारियल, या ठेकुआ, सब हमें यह सिखाते हैं कि वास्तविक भक्ति प्रकृति की गोद में छिपी हुई है। इस पर्व में गंगा और यमुना की लहरों के साथ संवाद करते हुए हम अपने अस्तित्व का वास्तविक अर्थ महसूस करते हैं। छठ का यह पर्व प्रकृति के प्रति एक असीम प्रेम और आदर का प्रतिबिंब है, जिसमें हम प्रकृति की गोद में ही अपने आप को सौंप देते हैं। जब व्रती ठंडे जल में उतरकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं, तो मानो वे स्वयं को, अपनी भावनाओं को, अपनी इच्छाओं को प्रकृति के चरणों में समर्पित कर देते हैं।

 

*समाज और परिवार के संगम का अद्वितीय प्रतीक*

छठ के दौरान गंगा-घाटों पर जब हर वर्ग, हर जाति, हर उम्र के लोग एक साथ जुटते हैं, तो वह एक अनोखी एकता का स्वरूप बन जाता है। यह पर्व हमें एकता, समरसता, और समाज के प्रति अटूट प्रेम की अनुभूति कराता है। दूर-दूर से लौटे लोग अपने घर-परिवार के साथ इस पर्व में संलग्न होते हैं, और यह उत्सव मानो एक बंधन बन जाता है जो हर किसी को एक अदृश्य धागे में बांध देता है। इस पर्व का सामूहिकता का संदेश समाज की मजबूती और मानवता की पहचान को नई ऊंचाइयों तक ले जाता है।

 

*पूरे वर्ष की प्रतीक्षा और प्रेम का प्रतीक*

उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों के लिए छठ का यह पर्व उनके जीवन का सार है। वे पूरे वर्ष इस पावन पर्व का बेसब्री से इंतजार करते हैं। यह त्यौहार न केवल उनकी परंपराओं का प्रतीक है, बल्कि वह भावनात्मक धरोहर है जिसे वे अगली पीढ़ियों के लिए संजोकर रखते हैं। चाहे व्यक्ति विदेश में हो या देश के किसी कोने में, छठ के आह्वान पर हर किसी के मन में अपनी मिट्टी और अपने लोगों के प्रति प्रेम जाग उठता है।

 

छठ पूजा केवल एक अनुष्ठान नहीं, यह उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की आस्था, परंपरा, और प्रकृति के प्रति प्रेम का अमूल्य खजाना है। यह पर्व हमारी परंपरा का वह अंश है जो हमें अपनी मिट्टी से जोड़ता है, और हमें याद दिलाता है कि चाहे समय बदल जाए, पर हमारी संस्कृति और हमारी आस्था सदा अमर रहेंगी।