मातृशक्ति स्वयं का, परिवार, समाज और राष्ट्र का चिंतन भारतीय दृष्टिकोण से करें : मीनाक्षी पिशवे (राष्ट्रीय संयोजिका, महिला समन्वय)
लखनऊ ब्यूरो रिपोर्ट
मातृशक्ति स्वयं का, परिवार, समाज और राष्ट्र का चिंतन भारतीय दृष्टिकोण से करें : मीनाक्षी पिशवे (राष्ट्रीय संयोजिका, महिला समन्वय)
भारत की आत्मा को समझने के लिये सांस्कृतिक दृष्टि जरूरी : प्रो. कल्पलता पाण्डेय (पूर्व कुलपति, बलिया विवि)
लखनऊ में सम्पन्न हुआ वृहत् “मातृशक्ति सम्मेलन”
लखनऊ : गोमती नगर विस्तार स्थित सिटी मोंटेसरी स्कूल में अवध प्रांत के पांचवाँ मातृशक्ति सम्मेलन सम्पन्न हुआ।
महिला समन्वय की अखिल भारतीय संयोजिका मीनाक्षी पिशवे ने कहा कि, भारत की आत्मा को समझने के लिए भारतीय दृष्टिकोण रखना जरूरी है अतः सभी महिलाएं स्वयं का, परिवार, समाज और राष्ट्र का चिंतन भारतीय दृष्टिकोण से करें। उन्होंने आगामी समय के लिए महिला समन्वय द्वारा परिवार प्रबोधन, पर्यावरण गतिविधि, सामाजिक समरसता, नागरिक कर्तव्य एवं स्वदेशी जैसे विषयों पर विशेष बल देने का सुझाव दिया। भारत के विकास में महिलाओं की भूमिका पुनातन काल से ही अग्रणी है अत: हमें शारीरिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक विकास को पुनर्स्थापित करना है।
छत्तीसगढ़ से आयीं सहकार भारती की राष्ट्रीय सह संयोजिका डॉ. शताब्दी पांडेय ने कहा कि, भारतीय संस्कृति नित्य नूतन और चिर पुरातन हैं। अत: महिलायें दोनों को आत्मसात कर आगे बढ़ें । विश्व की दृष्टि भारत पर है और भारत की दृष्टि मातृशक्ति पर है। स्त्री परिवार की धुरी तो है ही, साथ ही समाज व राष्ट्र के लिये उसका योगदान बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि, हमें परस्पर पूरकता के भाव को आत्मसात करना है। महिलाओं के प्रश्न पूरे समाज के हैं तथा समाधान सभी को मिलकर ढूंढना होगा।
द्वितीय सत्र में ‘भारत के विकास में महिला की भूमिका’ पर मुख्य वक्तव्य जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय बलिया की पूर्व कुलपति प्रो. कल्पलता पांडेय ने भारत की व्याख्या करते हुए कहा कि, ज्ञान के प्रकाश की ओर जो रत है वह भारत है। अथर्ववेद में भी भारत का वर्णन है। भारत की आत्मा को समझना है तो इसे सांस्कृतिक दृष्टि से देखना होगा। कर्म से भारतीय बनना जरूरी है। भारतीय शिक्षा व्यवस्था को गंभीरता से अपने अंदर उतारना चाहिए ।भारतीय होने पर गर्व होने का भाव नई शिक्षा नीति हमें देती है। जी-20 में महिला के नेतृत्व में विकास की बात कही गई है। उन्होंने महिलाओं का आह्वान करते हुए कहा कि, अपनी शक्ति को पहचानिए और अपनी रक्षा स्वयं करिए। आप व्यक्ति नहीं व्यक्तित्व हैं। जब अस्मिता पर संकट आए तो काली बन जाइए। महिलाएं ही सभ्य नागरिक का निर्माण कर सकती हैं अत: बच्चों को संस्कार प्रदान करें। आत्मसम्मान से जीने की प्रवृत्ति स्वयं में पैदा करें। हम कुछ बनें या न बनें किन्तु अच्छे भारतीय अवश्य बने।
द्वितीय सत्र की मुख्य अतिथि पुलिस महानिदेशक प्रशिक्षण एवं भर्ती बोर्ड बोर्ड श्रीमती रेनुका मिश्रा ने कहा कि, एक राष्ट्र अपनी महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है, वह उसकी प्रगति में दृष्टिगोचर होता है। समस्या को अपना समझना पड़ेगा तभी समाधान होगा। हम अपनी जिम्मेदारियाों को दूसरों पर प्रत्यारोपित करने के स्थान पर, अपने नियंत्रण की चीजों को तो करें। उन्होंने कहा कि मान लिया तो हार और ठान लिया तो जीत। उन्होंने सभी श्रोताओं से अच्छा नागरिक बनने का आह्वान किया।
सम्पूर्ण कार्यक्रम की प्रस्ताविकी रखते हुये महिला समन्वय की प्रांत संयोजिका डा. शुचिता ने कहा, संघ की शताब्दी वर्ष पूर्ण होने से पहले महिला समन्वय का कार्य प्रत्येक नगर स्तर एवं ग्रामीण क्षेत्रों में गांव स्तर तक पहुंचे ताकि नारी जगत में व्याप्त उदासीनता समाप्त हो सके।
कार्यक्रम में मोंटेसरी स्कूल की अध्यक्ष प्रो. गीता गांधी ने कहा कि, लड़कों व लड़कियों को समान महत्व देना चाहिये क्योंकि स्त्री के विकास से ही सामाजिक विकास संभव है।
मंच संचालन प्रो. अलका एवं प्रो. भारती पांडेय ने किया।
धन्यवाद ज्ञापन मोनिका भोनवाल ने किया।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से प्रान्त प्रचारक कौशल जी , महिला समन्वय की सह प्रांत संयोजिका अंजू प्रजापति, विभाग प्रचारक अनिल जी, विभाग कार्यवाह अमितेश जी, विजयलक्ष्मी जी, नीलम मिश्रा जी, डा. संगीता शर्मा जी, प्रशांत भाटिया जी, प्रभात अधौलिया जी , भुवनेश्वर जी, सिद्धार्थ जी आदि उपस्थित रहे।