गांवो में बढ़ते शहरीकरण का आईना है किताब ईगल आफ़ विलेज
कौशिक टंडन ब्यूरो चीफ बरेली NEWS AVP
*गांवो में बढ़ते शहरीकरण का आईना है किताब ईगल आफ़ विलेज*
बरेली। सी आर पी एफ से जुड़े संदीप यादव द्वारा लिखित छटी पुस्तक “ईगल आफ़ विलेज” का लोकार्पण समारोह ‘रोटरी भवन’ में हुआ, जिसमें विशिष्ट अतिथिगण के रूप में माधवराव सिंधिया पब्लिक स्कूल के प्रबंधक सौरभ अग्रवाल, बरेली कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग की शिक्षिका डॉ वंदना वर्मा, उत्तराखण्ड की लोक गायिकायें श्रीमती ज्योति उप्रेती सती व डॉ नीरजा उप्रेती, पंडित दीन दयाल विद्यालय के प्रधानाचार्य डॉ अवनीश यादव, साइकिल बाबा के नाम से विख्यात संजीव जिंदल मंचासीन रहे तथा वक्तागण के रूप में धीरेंद्र सिंह वीर, आशुतोष वाजपेयी, आशीष दीक्षित रहे।
कार्यक्रम आयोजक व लेखक संदीप यादव ने बताया कि ये पुस्तक गांव के विकास पर बेस्ड है इसमें गांव के शहरीकरण पर समाज को आईना दिखाया गया है, मर्डर मिस्ट्री भी है इसलिए सस्पेंस भी क्रियेट किया गया है, कोर्ट रूम ड्रामा भी है कुल मिलाकर आज के दौर की कहानी है ईगल आफ़ विलेज।
सौरव अग्रवाल ने कहा कि गांव अब शहर बनते जा रहे है हमें अपनी संस्कृति को बचाना है वरना देश भी खत्म हो जायेगा, हम अपने कॉलेज की लाइब्रेरी में इस पुस्तक को संजोयेगे। ताकि हमारे विद्यार्थियों में अपनी जड़ों से जुड़ने की सीख मिले।
वंदना शर्मा ने कहा कि संदीप अपने लेखन से शब्दों की सत्ता को बचाये रखते हैं, समस्याओं को सामने लाने के लिए संदीप का यह प्रयास सराहनीय है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करना मेरे लिए गौरवपूर्ण है मेरी शुभकामनाएं संदीप के साथ हैं वो यूँ ही आगे बढ़ें और अच्छा लिख कर समाज को दिशा देने का कार्य करें।
डॉ अवनीश यादव ने शेर पढ़ते हुए एक गांव से शहर आये व्यक्ति की मनोदशा का वर्णन किया कि ‘मैं अब राशन की कतारों में नजर आता हूँ , अपने खेतों से बिछड़ने की सजा है यह। उन्होंने आगे कहा कि यही सोच इस उपन्यास के रूप में परिभाषित है, गांवो को समाप्त कर कॉनरीट के जंगल खड़े करना मानवता का विनाश है। सच को सच कहने का जो साहस संदीप के पास है वो ईश्वर का आशीर्वाद है। जो भी जंगलो को गांवो को बचाने का प्रयास कर रहे हैं हमें उनका समर्थन करना चाहिए।
धीरेन्द्र वीर सिंह ने कहा कि आज साहित्य पढ़ने वाले कम हो गये हैं तो सृजित करने वाले भी कम रह गये हैं छत्तीसगढ़ की दुर्गम पहाडियों पर लेखन की हिम्मत करना सचमुच काबिले तारीफ है। गांवो के लोगों ने खेतीबाड़ी कर अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया और बच्चे गांव छोड गये, मैं ख़ुद अपनी जमीन बेच कर शहर आ गया। पर उम्मीद पर दुनिया क़ायम है हम पुनः जड़ों की तरफ़ लौटेंगे। उन्होंने कहा कि समाज में साहित्य की दुर्गति हो रही है क्योंकि दिन प्रतिदिन,
साहित्यकारों की बढ़ती कमी और साहित्य पढ़ने वालों की घटती रुचि से चिंता बढ़ रही है लेकिन दूसरी तरफ़ संदीप जैसे नवयुवक जब ऐसे प्रयास करते हैं तो अच्छा और सुखद अहसास होता है।
आशुतोष वाजपेयी ने अपने संबोधन में कहा कि हम असल में सुविधाएं छोडकर असुविधायों में आये पर अब कस्टमाइज़ हो गये हैं। हम जिस समाज में रहते हैं, वह समाज विकार एवं विसंगतियों से व्याप्त है। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते यह हमारा दायित्व बनता है कि हम विसंगतियों के मध्य रहते हुए अपनी गति को न सिर्फ़ तलाश करें बल्कि उसे आत्मसात भी करें। गति का चुनाव जो है, हमें धैर्य पूर्वक और विवेक पूर्वक ही करना होगा क्योंकि हमें नहीं पता है कि जिस गति का हमने चुनाव किया है वह गति हमें प्रगति की ओर ले जाएगी या दुर्गति की ओर ? ऐसे संशयपूर्ण समाज और माहौल में हमें विकार रूपी अवरोधों को दरकिनार कर अपने विचार को एक आकार देना है और उस आकार को साकार करना हमारा नैतिक दायित्व है, लेकिन यह सबकुछ सिर्फ़ कहने भर से संभव नहीं। इसके लिए परिस्थितियों से जूझना होगा। मेरा विश्वास है कि संदीप अगली पुस्तक ‘ईगल आफ़ इंडिया’ लिखेगा।
सीनियर पत्रकार आशीष दीक्षित ने कहा कि जब शहर में रहने वाला कोई व्यक्ति गांव जाता है तो उसे कोई काम होता है पर उसे चिंता नहीं होती गाँव की, इस किताब को पढ़ कर लगता है मानो लेखक के साथ एक यात्रा कर रहे हैं, ये शब्दों की गोलियां और तेज कलम चलाते हैं जिसके लिए ये बधाई के पात्र हैं, एक बेहतर प्रयास है ये समाज की सोच बदलने का पर कहीं ये प्रयास भी चर्चा में ही सिमट कर न रह जाए इसका ध्यान भी हमे ही रखना है, मेरी शुभकामनाएं।
संजीव जिंदल ने बहुत ही कम शब्दों मे अच्छी बात कही कि वर्तमान में व्यक्ति अपने विचारों को अन्य व्यक्ति पर थोप लेने में ही खुश रहता है जबकि व्यक्ति का मन आज़ाद परिंदा है, उसे विचारों के गंगन में निरंकुश उड़ने दो, उसे रोको मत। मैंने बहुत से पहाड़ों की यात्रा की है उन ऊँची जगहों पर विकास का मतलब थोड़ी बहुत बिजली और सड़क पहुंचना ही होता है वहां का व्यक्ति अपनी जड़ों से जुड़ा होता है और खुश रहता है, मैं अविभावकों से निवेदन करूंगा कि अपने बच्चों को गाँव से जोड़ें।
लेखिका कविता अरोरा ने कहा कि यहां का माहौल देख कर लग रहा है कि संदीप जी ने सत्संग रखा है क्यूंकि आज मोबाइल के युग मे लोग सिर्फ़ एक किताब पर चर्चा कर और सुन रहे हैं, हमने पेड़ काट कर जंगलों को पीछे धकेल कर महल तो बना लिए पर इनमे जिंदगी कहाँ है, संदीप ने सबको आईना दिखाया है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तराखण्ड से पधारीं उप्रेती बहनों ने अपने लोक गीतों से माहौल की रौनक को बढ़ा दिया।
कवियत्री एवं संचालिका शिल्पी सक्सेना ने संदीप को शस्त्रधारी शास्त्र रचियता की संज्ञा देते हुए अपने बेहतरीन संचालन कौशल से सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।
अन्य अतिथियों में मुकेश सिंह, बृजेश तिवारी, शीशपाल राजपूत, विमल भारद्वाज, सौरव शर्मा, नंदु सिंह तोमर, डॉ रविजीत सिंह, सूरज सक्सेना, राज गुप्ता, अमित कंचन, रोहित राकेश, अमित रंगकर्मी, रामजी रानावत, सुनील यादव, भास्कर भृगुवंश, अनिल मुनि, रश्मि यादव, राखी गंगवार, पुष्पइंद्रा गोला, कौशिक टण्डन आदि कई लोग उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के अंत में श्रीमती हीरा कली (माता जी), श्री आशीष दीक्षित ( जिनपर यह पुस्तक लिखी हुई है), श्री भानू भारद्वाज (पत्रकार और पुस्तक के मुख्य किरदार भी), धीरेंद्र वीर सिंह (समाज सेवा), आशुतोष भारद्वाज (समाज सेवा ), सर्पमित्र गुड्डू भइया ( सामाजिक क्षेत्र), सचिन श्याम भारतीय (पत्रकारिता), मोहित सिंह (एनएसएस व समाज सेवा), कु नूरजहां चित्रकार, कु अनुजा विद्या श्रीवास्तव ( सामाजिक कार्यों में सहभागिता एवं ग्रामीण बस्तियों में शिक्षा) का सम्मान भी किया गया।