उत्तराखंड के लोगों को अपनी परंपरागत मोटे अनाज की खेती तरफ लौटना चाहियेः अजय टमटा

*उत्तराखंड के लोगों को अपनी परंपरागत मोटे अनाज की खेती तरफ लौटना चाहियेः अजय टमटा*

 

अल्मोड़ा, उत्तराखंड, 17 मई 2023: अल्मोड़ा के सांसद अजय टमटा ने आज राज्य की जनता से अपनी परंपरागत मोटे अनाज की खेती की तरफ लौटने का आह्वान करते हुये कहा कि उत्तराखंड में पहुंचने वाले पर्यटकों का स्वागत परंपरागत व्यंजनों से किया जाना चाहिये।

 


श्री टमटा ने यहां आयोजित दो दिवसीय मिलेट (श्री अन्न) मेला, का उद्घाटन करते हुये कहा कि हमारे पूर्वजों ने मक्का, बाजरा, मंडुआ, कौंणी, झुंगरू जैसे मोटे अनाजों की खेती का जो ज्ञान हम लोगों को दिया है वह बहुत महत्वपूर्ण है, हमें इनकी खेती को बढ़ाना चाहिये।
केन्द्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने उद्योग संगठन एसोचैम के सहयोग से मोटे अनाज के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र ने 2023 को अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष घोषित किया है। इसी के मद्देनजर देशभर में मोटे अनाजों के पोषक तत्वों और इनकी खेती को बढ़ावा देने को लेकर लगातार कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। विदेशों में भी भारतीय दूतावासों के जरिये भारतीय मोटे अनाज की खूबियों और इनके गुणों का प्रसार करते हुये नये नये व्यंजनों को परोसा जा रहा है।

 


श्री टमटा ने उत्तराखंड की जनता से कहा कि वह अपनी परंपरागत खेती की तरफ लौटे। मंडुआ, झंगोरा और कौणी के नये नये उत्पाद तैयार किये जाने चाहिये। मंडुआ के बिस्कुट बनाकर बाजार में उतारने चाहिये। उत्तराखंड की गौथ की दाल और लाल चावल की अपनी पहचान है। उत्तराखंड के कुछ खास क्षेत्रों में होने वाले अनाज की अच्छी मांग है उनका उत्पादन बढ़ाया जाना चाहिये।
मानव जीवन को स्वस्थ्य रखने में मोटे अनाज की भूमिका को रेखांकित करते हुये अल्मोड़ा सेे भाजपा सांसद श्री टमटा ने कहा हमारे पूर्वजों के समय से ही हमें यह जानकारी मिलती रही है कि मंडुआ जिसे गढ़वाल में चून भी कहते हैं, की रोटी पाचन के लिहाज से अच्छी होती है। मंडुआ और गेहूं के आटे को मिलाकर बनाई गई रोटी आज भी हम खाते हैं, कहते हैं कि इससे कब्ज नहीं होती है। ठंड के मौसम में गौथ की दाल आपको गर्मी देती है। इस तरह की मोटी मोटी जानकारी हमारे पूर्वजों से हमें मिली है। भंगुलू, पुदीना की चटनी, काफल का स्वाद उत्तराखंड के लोगों को आज भी याद है।
उन्होंने कहा कि हमें उत्तराखंड के इन्हीं परंपरागत उत्पादों को आगे बढ़ाना चाहिये और राज्य में आने वाले पर्यटकों की भोजन की थाली में मोटे अनाजों से तैयार उत्पाद परोसने चाहिये।
अल्मोड़ा की जिला मजिस्ट्रेट सुश्री वंदना ने भी उत्तराखंड के होटलों में मेहमानों के स्वागत में उत्तराखंड के परंपरागत खाद्य पदार्थों को परोसने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आज मंडुऐ का केक, पिज्जा और मोमो भी बन रहा है। हमें इस तरह के उत्पादों को बढ़ावा देना चाहिये। भारत और उत्तराखंड में उगाये जाने वाले मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिये ही मिलेट मेलों का आयोजन किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत सरकार मोटे अनाजों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद को बढ़ावा दे रही है। निजी क्षेत्र में भी इनकी मांग बढ़नी चाहिये। अल्मोड़ा जिले में पिछले खरीद सत्र में 1,500 क्विंटल मंडुआ की सरकारी खरीद की गई जबकि इस विपणन वर्ष के लिये 10,000 क्विंटल खरीद का लक्ष्य रखा गया है। सरकार के साथ साथ व्यापार मंडल को भी मंडुआ और दूसरे मोटे अनाजों की खरीद के लिये आगे आना चाहिये।
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर- वीपीकेएएस) के प्रधान वैज्ञानिक डा. आर. के खुल्बे ने कहा कि मोटे अनाज का भारत में खाद्य और पेय पदार्थ के तौर पर इस्तेमाल होता है। उन्होंने कहा कि मोटा अनाज ऐसे अन्न है जिसे घरेलू और औद्योगिक दोनों स्तरों पर मूल्य वर्धित किया जा सकता है। मोटे अनाज ने दूरदराज दुर्गम इलाकों में रहने वाली जनसंख्या को खाद्य सुरक्षा के साथ साथ पोषण सुरक्षा भी उपलब्ध कराई है। मोटे अनाज कई तरह के विटामिन, फाइबर, खनिज से भरपूर है। इन्हें शुष्क भूमि में पैदा होने वाला चमत्कारी अनाज माना गया है।
उत्तराखंड सरकार में ग्रामीण व्यवसाय इंक्यूबेटर में इंक्यूबेशन प्रबंधक श्री योगेश भट्ट ने भी समारोह को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि भारत मोटे अनाज का दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक है जबकि मोटे अनाजों का पांचवां बड़ा निर्यातक है। मोटे अनाजों के लिये मांग तेजी से बढ़ी है जिसके साथ निर्यात में भी तेजी आई है।
नगर व्यापार मंडल अल्मोड़ा के अध्यक्ष सुशील शा ने इस मौके पर कहा कि इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य मोटे अनाज यानि श्री अन्न के स्वास्थ्य लाभ के बारे में जागरूकता बढ़ाई जाये। मोटे अनाज का एक और बड़ा लाभ यह है कि इसे चुनौतीपूर्ण मौसम परिस्थितियों में भी उगाया जा सकता है।
एसोचैम के सहायक सेक्रेटरी जनरल श्री डी एस राजोरा ने अपने स्वागत संबोधन में सभी गणमान्य अतिथियों का अभिनंदन करते हुये कहा कि मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिये लाभकारी होने के साथ जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने में भी सक्षम है। उन्होंने मोटे अनाज की प्रसंस्करण प्रौद्योगिकी को आगे लाने पर जोर दिया।